उत्तर : इच्छाशक्ति को संयम द्वारा नियंत्रित कर उसके प्रवाह का विकास करना ही शिक्षा कहलाता है।
प्रश्न - 2. हमें दूसरों का भला क्यों करना चाहिए?
उत्तर : क्योंकि वास्तव में दूसरों का भला करने से हम अपना ही उपकार करते हैं।
प्रश्न - 3. कर्तव्य पालन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : दूसरों की सहायता करना और संसार का भला करना ही कर्तव्य पालन है।
प्रश्न - 4. नवरत्नों की क्या विशेषता बताई गई है?
उत्तर : वे केवल कल्याण के लिए ही कर्म करते हैं, न तो नाम-यश की चिंता करते हैं और न ही स्वर्ग की इच्छा रखते हैं।
लघूत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न - 1. दूसरों के प्रति कर्तव्य का क्या अर्थ है?
उत्तर : दूसरों के प्रति कर्तव्य का अर्थ है उनकी सहायता करना, दुख-कष्ट दूर करना और परोपकार करना।
प्रश्न - 2. व्यक्ति को किस चेष्टा के अंतर्गत कर्म करना चाहिए?
उत्तर : व्यक्ति को निःस्वार्थ भाव और परोपकार की चेष्टा के अंतर्गत कर्म करना चाहिए।
प्रश्न - 3. व्यक्ति का सर्वोच्च उद्देश्य क्या होना चाहिए?
उत्तर : व्यक्ति का सर्वोच्च उद्देश्य संसार के भले की चेष्टा करना और स्वयं को नैतिक व सशक्त बनाना होना चाहिए।
प्रश्न - 4. पूर्ण नैतिक की क्या पहचान है?
उत्तर : पूर्ण नैतिक वह है जो किसी प्राणी की हिंसा न करे, अहिंसा में विश्वास रखे और जिसकी उपस्थिति मात्र से शांति व प्रेम उत्पन्न हो।
दीर्घउत्तरीय प्रश्न -
प्रश्न - 1. ‘धन्य पाने वाला नहीं, देने वाला होता है’? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : देने वाला ही धन्य माना जाता है क्योंकि दान करने से व्यक्ति को आत्मसंतोष, पवित्रता और आत्मोन्नति प्राप्त होती है। प्राप्त करने वाला व्यक्ति केवल आवश्यकता पूरी करता है, परंतु देने वाला परोपकार करके अपना भी कल्याण करता है। इस प्रकार असली सौभाग्य और महानता देने वाले की होती है, पाने वाले की नहीं।
प्रश्न - 2. पूर्ण नैतिकता से क्या अभिप्राय है? इसकी क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर : पूर्ण नैतिकता का अर्थ है – मन, वचन और कर्म से सत्य, अहिंसा, सहिष्णुता और सदाचार का पालन करना।
इसकी विशेषताएँ हैं –
किसी प्राणी को कष्ट न देना।
हिसा, क्रोध, ईर्ष्या से दूर रहना।
व्यक्ति की उपस्थिति से शांति और प्रेम का वातावरण बनना।
उसका चरित्र हर परिस्थिति में समान और महान रहना।
प्रश्न - 3. ‘मनुष्य अनेक छोटी-छोटी बातों का गुलाम होकर भी स्वयं को स्वतंत्र समझता है।’ इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर : यह कथन सत्य है। मनुष्य इंद्रियों, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ और छोटी-छोटी इच्छाओं का गुलाम बनकर भी स्वयं को स्वतंत्र समझता है। पर वास्तव में स्वतंत्रता वहीं है जहाँ आत्मसंयम और सहिष्णुता हो। जब मनुष्य इन क्षुद्र बातों पर विजय प्राप्त कर लेता है तभी वह सच्ची स्वतंत्रता को प्राप्त करता है।
प्रश्न - 4. इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं कि ‘दूसरों की सहायता करने का अर्थ है अपनी ही सहायता करना।’
उत्तर : मैं इस कथन से पूर्णतः सहमत हूँ। जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो हमारे भीतर दया, करुणा, और सद्गुणों का विकास होता है। इससे आत्मिक संतोष और आंतरिक शक्ति मिलती है। परोपकार से समाज में भी सद्भावना और विश्वास बढ़ता है। इस प्रकार दूसरों की सहायता करने से वास्तव में हम अपना ही भला करते हैं।